Monday, January 25, 2010

युगों युगों से यही हमारी बनी हुई परिपाटी है

युगों युगों से यही हमारी बनी हुई परिपाटी है
खून दिया है मगर नहीं दी कभी देश की माटी है
इस धरती ने जन्म दिया है यही पुनिता माता
है एक प्राण दो देह सरीखा इससे अपना नाता है
यह पावन माटी ललाट की ललित ललाम लालटी है
खून दिया है मगर नहीं दी कभी देश की माटी है
इसी भूमि पुत्री के कारण भस्म हुई लंका सारी
सुई नोक भर भू के पीछे हुआ महाभारत भारी
पानी सा बह उठा लहू फिर पानीपत के प्रांगड़ मे
बिछा दिए रिपुओ के शव थे उसी तारायण के रण मे
प्रष्ट बाचती इतिहासो के अब भी हल्दी घाटी है
खून दिया मगर नहीं दी कभी देश की माटी है
सिख मराठा राजपूत क्या बंगाली क्या मद्रासी
इसी मंत्र का जाप कर रहे युग युग से भारत वासी
बुन्देले अब भी दोहराते यही मंत्र है झाँसी में
देंगे प्राण न देंगे माटी गूँज रहा है नस-नस मे
शीश चढ़ाए काट गर्द ने या अरी गर्दन काटी है
खून दिया है मगर नहीं दी कभी देश की माटी है
इस धरती के कण कण पर चित्र खिचा कुर्बानी का
एक एक कण छन्द बोलता चढ़ी शहीद जवानी का
ये इसके कण नहीं अरे ज्वालामुखियों की लपटे है
किया किसी ने दावा इन पर ये दावा शे झपटे हैं
इन्हें चाटने बढ़ा उसी ने धूल धरा की चाटी है
खून दिया मगर नहीं दी कभी देश की माटी है

वंदे मातरम

3 comments:

Unknown said...

मुझे बहोत दिनोसे ईस गीत की तलाश जो आज आपके कारन मिला है बहोत धन्यवाद
सादर प्रणाम....वंदेमातर

Unknown said...

यह हमारा दल गीत था सन 2002 मे एन सी सी की तरफ से।यह गीत अविस्मरणीय है।
आपका आभार और धन्यवाद। 🙏⚘

ravi bhilai said...

यह कविता मेरे पिताजी ने मुझे सिखाया और मैने पहली बार इसे मंच पर 1982 में बोला था।
इसे पुनः स्मरण दिलाने बहुत बहुत आभार