Tuesday, January 26, 2010

यह हिमालय सा उठा मस्तक ना झुकने पाएगा

यह हिमालय सा उठा मस्तक ना झुकने पाएगा
रोक दूँगा में प्रभंजन को जो प्रलय के गीत गाता
मोड़ दूँगा धार नद की नाश का संदेश लाता
ध्वंश का डंका बजा कर मत डराओ तुम मुझे
आज नाव निर्माण का यह स्वर ना रुकने पाएगा
जानते हो स्वार्थ की होली जलाकर जो चले
जानते हो मोह की अर्थी सजाकर जो चले
मोल उनको ले ना पायोगे रुफले ठिकारों से
रक्त से सींचा गया यह देश तरू हरियाएगा
हम लूटा देंगे जवानी एक क्या लाखों यहा पर
हम चड़ा देंगे सुमन बलिदान की नव -वेदिका पर
जाग उठेंगी हड्डिया सोई पड़ी चित्तोड़ राज मे
मात्रि-भू के भाल पर फिर अरुण ध्वज फहराएगा !!

!! भारत माता की जय !!

1 comment:

Unknown said...

अति सुंदर भैया जी
जय हिंद जय भारती