Wednesday, February 2, 2011

"तरुणाई"

शांत रहूं तो धरती हूँ मैं जाग उठू विस्त्रत आकाश
मैं युग की हूँ विमल चेतना जीवन का माधुरम विश्‍वास |
मैं सपनों की अमर चेतना जीवन की अमराई
परिवतन है चेरी मेरी कहलाती हूँ तरुणाई|
मैने ही भूगोलों के इतिहास बदल डाले हैं
उठ कर आने पर मेरे ही शोषण के टूटे प्याले हैं|
वही राष्ट्र आगे बढ़ता है जिसकी जाग उठे तरुणाई
मंज़िल वही प्राप्त करता है जिसने 'लक्ष्य चेतना' पायी||

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